Manoj Muntashir Shayari On Maa In Hindi | Best Manoj Muntashir shayari on maa in Hindi

This Manoj Muntashir Shayari On Maa In Hindi will touch your heart because mother is the person who loves us selflessly.

2024-11-15 09:44:28 - Milan

तुम आज भी मेरी नहीं हो,कल भी नहीं थी,अफवाह है कि किस्मतेंएक दिन बदलती हैं.
तू किसी की भी रहे, तेरी याद मेरी है,अमीर हूँ मैं कि ये जायदाद मेरी है.
ये गलत बात है कि लोग यहाँ रहते है,मेरी बस्ती में अब सिर्फ मकाँ रहते है,हम दिवानो का पता पूछना तो पूछना यूँजो कही के नही रहते वो कहाँ रहते है.
मैं तुझसे प्यार नहीं करतापर कोई ऐसी शाम नहीं जबआवारा सड़कों पर मैं तेराइंतज़ार नहीं करता
अँधेरी रात नहीं लेती नाम ढलने कायही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का
बयान सच के तराज़ू में तोलता हूँ मैं…तेरी ख़ुशी के लिए थोड़ी बोलता हूँ मैं ..!!!मनोज मुंतशिर
👩‍👧‍👦 हर गली, हर शेहेर, हर देश-विदेश देखालेकिन माँ तेरे जैसा प्यार कहीं नहीं देखा | 🤱
“मैं वो बुलबुल, मोहब्बत है जिसे तेरी सलाख़ों से …तू पिंजरा खोल भी देगा तो मेरा उड़ना मुश्किल है
आज आग है कल हम पानी हो जायेंगे,आखिर में सब लोग कहानी हो जायेंगे.
आज आग है कल हम पानी हो जायेंगे,आखिर में सब लोग कहानी हो जायेंगे.मनोज मुंतशिर
कभी खुद्धारी की सरहद ही नहीं लांघते है,भीख तो छोड़िये, हम हक़ भी नहीं मांगते है.मनोज मुंतशिर
न दिन है न रात है कोई तन्हा है न साथ हैजैसी आँखें वैसी दुनिया बस इतनी सी बात है.
अच्छा लिखने के लिए इश्क हो जाना जरूरी है,बहुत अच्छा लिखने के लिए उस इश्क का खो जाना जरूरी है.मनोज मुंतशिर
मैंने लहू के कतरे मिटटी में बोये हैखुशबू जहाँ भी है मेरी कर्जदार है,ऐ वक़्त होगा एक दिन तेरा मेरा हिसाबमेरी जीत जाने कब से तुझ पे उधार है.मनोज मुंतशिर
तुम अपनी आँखों को हँसना सिखाओ,मेरी आँखों में बादल रहने दो न..मुबारक़ हो तुम्हे ये दुनियादारी,मैं पागल हूँ तो पागल रहने दो न..
दिल पर ज़ख्म खाते हैं और मुस्कुराते हैंहम वो हैं जो शीशों को टूटना सिखाते हैं
बेमक़सद-सा मैं गलियों मेंमारा-मारा फिरता हूंजिन रास्तों से वाकिफ़ हूं,वहीं ठोकर खा के गिरता हूं
अच्छा लिखने के लिए इश्क़हो जाना जरुरी है,बहुत अच्छा लिखने के लिए उसइश्क़ का खो जाना जरुरी है.
मैं अपनी गलियों से बिछड़ा मुझे ये रंज रहता है,मेरे दिल में मेरे बचपन का गौरी गंज रहता है.मनोज मुंतशिर
हवा में घर बनाया था कभी जो,उसकी के सामने बेबस पड़ा हूँ…तुम्हारे भीं दरीचा कौन खोलेकई जन्मो से मैं बाहर खड़ा हूँ…!!!
न दिन है न रात है…कोई तन्हा है न साथ है…जैसी आँखें वैसी दुनिया..बस इतनी सी बात है.मनोज मुंतशिर
साफ दिखने लगेगी ये दुनियाऐनक आंखो से उतर जाएगीकिसी बच्चे को खेलते देखोआंखो की रोशनी बढ़ जाएगी
बयान सच के तराज़ू में तोलता हूँ मैंतेरी ख़ुशी के लिए थोड़ी बोलता हूँ मैं.
अभी हाथ हाथों से छूटे नहीं हैं,अभी रोक लो तो ठहर जाऊँगा मैं,कहाँ ढूंढ़ोगे फिर, कहाँ फिर मिलूंगा,अगर वक्त बन के गुजर जाऊंगा मैं.
अँधेरी रात नहीं लेती नाम ढलने का,यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का.मनोज मुंतशिर
हमें प्यार अब दुबारा होना बहुत है मुश्किल,छोड़ा कहाँ है तुमने हमको किसी के काबिल.
सवाल एक छोटा सा था,जिसके पीछे पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर ली,भुलाऊं किस तरह वो दोनों आंखें,किताबों की तरह जो याद कर ली..!!
लपक के चलते थे बिल्कुल सरारे जैसे थे,नये-नये थे तो हम भी तुम्हारे जैसे थे.मनोज मुंतशिर
👩‍👧‍👦 मुश्किल घड़ी में ना पैसा काम आयाना रिश्तेदार काम आएआँख बंद की तो सिर्फ माँ याद आई | 🤱
👩‍👧‍👦 पैसों से सब कुछ मिलता है परमाँ जैसा प्यार कहीं नहीं मिलता | 🤱
तू किसी की भी रहे, तेरी याद मेरी है,अमीर हूँ मैं कि ये जायदाद मेरी है.मनोज मुंतशिर
जूते फटे पहनके आकाश पर चढ़े थे,सपने हमारे हरदम औकात से बड़े थे,सिर काटने से पहले दुश्मन ने सिर झुकायाजब देखा हम निहत्थे मैदान में खड़े थे.
लपक के जलते थे बिलकुल शरारे जैसे थेनये नये थे तो हम भी तुम्हारे जैसे थे.
मैं अपनी गलियों से बिछड़ा,मुझे ये रंज रहता है,मेरे दिल में मेरे बचपन कागौरीगंज रहता है..!!
हवा में घर बनाया था कभी जो,उसकी के सामने बेबस पड़ा हूँ…तुम्हारे भीं दरीचा कौन खोलेकई जन्मो से मैं बाहर खड़ा हूँ…!!!मनोज मुंतशिर
मैंने लहू के कतरे मिटटी में बोये हैंखुशबू जहाँ भी है मेरी कर्जदार है,ऐ वक़्त होगा एक दिन तेरा मेरा हिसाबमेरी जीत जाने कब से तुझ पे उधार है.
कश्तियाँ हमने जला दी है भरोसे पर तेरेअब यहाँ से नहीं लौट कर जाने वाले।मनोज मुंतशिर
मैंने जिस पल तुझको सोचा ना याद किया,वक़्त तो गुज़रा मगर मैंने वो पल ना जिया.
हिसाब लगाकर देख लो,दुनिया के हर रिश्ते में,कुछ अधुरा आधा निकलेगा,एक माँ का प्यार है जो दूसरों सेनौ महीने ज्यादा निकलेगा..!!
कभी खुद्दारी की सरहद ही नहीं लांघते हैं,भीख तो छोड़िये हम हक़ भी नहीं मांगते हैं.
जूते फटे पहनके आकाश पर चढ़े थे,सपने हमारे हरदम औकात से बड़े थे,सिर काटने से पहले दुश्मन ने सिर झुकायाजब देखा हम निहत्थे मैदान में खड़े थे.मनोज मुंतशिर
👩‍👧‍👦 माँ खुद भूकी होती है मुझे खिलाती हैखुद दुखी होती है मुझे चैन की नींद सुलाती है | 🤱
👩‍👧‍👦 कहीं भी चला जाऊँ दिल बेचैन रेहता हैजब घर जाता हूँ तो माँ के आंचल में ही सुकून मिलता है | 🤱

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